अगले वित्त सत्र 2022-23 के लिए बजट पेश होने का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। ये आम बजट कोरोना महामारी के दौर में पेश होने वाला है, ऐसे में इस बजट से कई उम्मीदें लगाई जा रही हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र को लेकर ये उम्मीदें लगाई जा रही हैं कि वित्त मंत्री कोरोना मरीजों व उनके परिवार के लिए कुछ घोषणाएं कर सकती हैं।
पिछले वर्ष के बजट में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को 71,268.77 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जो वर्ष 2020-21 के बजट अनुमानों से लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि थी। लेकिन बजट 2020-21 के लिए संशोधित अनुमान 78,866 करोड़ रुपये था। इसका मतलब है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बजटीय आवंटन में 9.6 फीसदी की कमी आई है।
भारत ने 2020-21 में अपने जीडीपी का 1.8 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च किया। पिछले वर्षों में यह 1-1.5 प्रतिशत था। यह दुनिया में किसी भी सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर खर्च किए जाने वाले सबसे कम खर्च में से एक है। नतीजतन, भारत सबसे अधिक आउट-पॉकेट-व्यय(ओओपीई) वाले 10 शीर्ष देशों में शामिल है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के अनुसार, भारत अगर अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय के मौजूदा स्तरों में जीडीपी के तीन प्रतिशत की वृद्धि करता है तो ओओपीई को 60 प्रतिशत से लगभग 30 प्रतिशत पर लाया जा सकता है।
भारत दुनिया में सबसे कम सार्वजनिक स्वास्थ्य बजट वाले देशों में है। भारत की तुलना में दुनिया के कुछ विकासशील देश अपने स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिक जीडीपी का योगदान करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्राजील के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यय के लिए कुल जीडीपी का 8% से अधिक का कुल बजट है। यहां तक कि बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश अपने जीडीपी का 3% से अधिक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की ओर खर्च करते हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि “स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और पहुंच के मामले में भारत 180 देशों (ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी, 2016) में 145वें स्थान पर था। केवल कुछ उप-सहारा देशों, कुछ प्रशांत द्वीपों, नेपाल और पाकिस्तान को भारत से नीचे स्थान पर थे। ”
यहां तक कि 2018 में मेडिकल जर्नल लैंसेट द्वारा जारी हेल्थकेयर एक्सेस एंड क्वालिटी इंडेक्स में भी भारत स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और पहुंच के मामले में 195 देशों में से 145 वें स्थान पर है, जो चीन (48), श्रीलंका (71) और बांग्लादेश (133) जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है।
भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए कई कदम उठाने की आवश्यकता है। इसे लेकर एजिस इंडिया के प्रबंध संचालक, संदीप गुलाटी का कहना है कि चिकित्सा सुविधाओं का विकास करना के लिए चिकित्सा विश्वविद्यालयों का विकास करना और फिर टियर 2 टियर 3 शहरों में बुनियादी ढांचे को स्थापित करना आवश्यक है। सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसके लिए संदीप गुलाटी का कहना है कि आगामी बजट में दो सबसे ज्यादा उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल- स्टील और सीमेंट पर आयात शुल्क कम किया जाना चाहिए।
शैलजा चंद्रा,पूर्व सचिव, भारत सरकार का कहना है कि हमारे पास सार्वजनिक स्वास्थ्य काडर नहीं है जिस पर 2017 की स्वास्थ्य नीति में जोर दिया गया था। उन्हें उम्मीद है कि इस बजट में यह उल्लेख होगा कि सरकार के पास एक केंद्रीय योजना होगी या शायद कुछ प्रोत्साहन मुद्दे होंगे जो इस प्रकार की सेवा स्थापित करेंगे।
साथ ही शैलजा चंद्रा का कहना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सबसे अहम मुद्दा है जो कि अस्पताल की देखभाल से बहुत अलग है। इसे देखते हुए संस्थान के पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य वह है जो भविष्य की महामारियों के प्रकोप को रोकेगा। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसके लिए नीति स्तर के समर्थन और वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है।
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