रोग, जख्म और जन्मजात दोष जीवन की हकीकत हैं। परंतु समाज ऐसे लोगों को हीन दृष्टि से देखने लगता है। दिव्यांगता शारीरिक या मानसिक हो सकती है। लेकिन सबसे बड़ी विकलांगता हमारे समाज में है, जिसके कारण एक दिव्यांग व्यक्ति खुद को असक्षम और असहज महसूस करता है। हालांकि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है पर आज भी हमारे देश में कुछ बातें नहीं बदलीं।
यह सच है कि हम हर किसी को पैरों के साथ देखना चाहेंगे लेकिन अगर किसी के पास पैर नहीं हैं, तो यह उसके लिए भारी दुख का कारण नहीं बनना चाहिए। लोग उसकी मदद कर सकते हैं ताकि उसका जीवन उतना मुश्किल ना हो। यह एक व्यक्तिगत समस्या से अधिक एक सामाजिक समस्या है, जिसे हल करना जरूरी है।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 121 करोड़ जनसंख्या में से 2.68 करोड़ व्यक्ति दिव्यांग हैं जो कुल जनसंख्या का 2.21% है। दिव्यांग आबादी में 56% (1.5 करोड़) पुरुष हैं और 44% (1.18 करोड़) महिलाएं हैं।
अलग-अलग लोगों में अलग-अलग क्षमताएं होती हैं। हम सभी 10 सेकेंड में 100 मीटर नहीं दौड़ सकते। क्या इसका यह मतलब है कि हम विकलांग हैं? जो व्यक्ति ऐसा कर सकता है, उसके मुकाबले तो हम विकलांग ही हुए न? तो ‘विकलांग’ एक तुलनात्मक शब्द है। लोगों में शारीरिक और मानसिक क्षमताओं का स्तर अलग-अलग होता है। मगर समाज एक चीज जरूर कर सकता है, जहां तक संभव हो, समान अवसर पैदा करना।
2019 में “स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया: चिल्ड्रन्स विद डिसेबिलिटी” नामक रिपोर्ट यूनेस्को की भारत शाखा द्वारा प्रकाशित की गई। इसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेजों के व्यापक शोध के आधार पर तैयार किया गया है। यह रिपोर्ट दिव्यांग बच्चों की शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर विस्तृत जानकारी प्रदान करती है। साथ ही ये नीति-निर्माताओं के समक्ष दस प्रमुख सुझाव भी प्रस्तुत करती है।
वर्तमान में 5 वर्ष की आयु के दिव्यांग बच्चों में से तीन-चौथाई और 5 से 19 वर्ष की उम्र के एक-चौथाई बच्चे किसी भी शैक्षणिक संस्थान में नहीं जाते हैं। स्कूल में दाख़िला लेने वाले बच्चों की संख्या स्कूलिंग के प्रत्येक क्रमिक स्तर के साथ काफ़ी कम हो जाती है। स्कूलों में दिव्यांग लड़कों की तुलना में दिव्यांग लड़कियों की संख्या कम देखी गई है।
चाहे पब्लिक ट्रांसपोर्ट में चढ़ने की बात हो या सार्वजनिक जगहों पर जाने की, कई देशों में अब भी दिव्यांग लोगों के लिए काफी उपाय नहीं किए गए हैं। जिससे वे समाज में अपना काम चला सकें। विश्व दिव्यांग दिवस पर दिव्यांग लोगों के लिए अलग-अलग जगहों पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है। लेकिन कुछ दिनों बाद, लोग इन बातों को भूल कर अपने काम में लग जाते हैं। जरुरत है कि हम सब मिलकर दिव्यांगों के रहने के लिए एक बेहतर संसार तैयार करें।
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